शुक्रवार, 15 अक्टूबर 2010

लोमड़ी जी, आपको प्रणाम

लोमड़ी को जब लता में ऊंचाई पर लगे अंगूर काफी प्रयास के बाद भी हासिल नहीं होते। वो कहती है, अंगूर ख_ïे हैं, और अपनी राह लेती है।लोमड़ी की इस बात केलिए पता नहीं क्यों आलोचना की जाती है। पीढिय़ों से इस कतई व्यावहारिक व्यवहार को कृत्य साबित किया जा रहा है। यदि अतिरिक्त प्रयास के बाद भी आपको कोई वस्तु प्राप्त न हो तो सबसे उचित व्यवहार क्या होगा। उस वस्तु के लोभ में व्याकुल रहें। प्रयास विफल होने के क्षोभ में निराश हो जाएं। रोना, कलपना शुरू कर दें...।जो खाद्य वस्तु मिल नहीं रही उसका स्वाद कुछ भी हो क्या सोचें। जो अतिरिक्त प्रयास के बाद भी प्राप्त न हो उस पर क्या कलपें। क्यों न आगे बढ़ें और अन्य को अपना लें। ...........लोमड़ी जी ने ये ही किया। लोमड़ी जी आपको प्रणाम!

2 टिप्‍पणियां:

Asha Joglekar ने कहा…

Achcha laga ye najariya.

Udan Tashtari ने कहा…

लोमड़ी जी को हमारा भी प्रणाम कह दिजियेगा, प्लीज!