गुरुवार, 14 अक्टूबर 2010

आदमी बन!

सुरेंद्र मोहन पाठक। आम जन के लिए उपन्यास लिखने वाले लेखक महोदय का बहुतायत में प्रयोग किया जाने वाला एक वाक्य अचानक ध्यान आया। आदमी बन! आपकी स्वाभाविक प्रतिक्रिया हो सकती है, ऐसा इन दो शब्दों और एक चिन्ह में क्या है। मैं उपदेश देने पर आऊं तो अकसर कहता हूं कि अच्छे आदमी बनो। बोलता हूं, गुणवान आदमी बनो। ताकीद करता हूं, तेज तर्रार आदमी बनो........। लेकिन आदमी बनने की बात कभी नहीं कही। हम अच्छा आदमी बनने की कोशिश करते हैं, तेजतर्रार आदमी बनने में लगे रहते हैं, लेकिन आदमी होते हुए आदमी नहीं बन पाते। बनने का प्रयत्न भी नहीं करते। ख्याल भी नहीं आता। आदमी। सभी कमजोरियों से भरा हुआ। ईष्र्यालु, क्रोधी, घमंडी, लालची..........। फिर आदमी में ऐसा क्या है कि आदमी बना जाए, आदमी बनने की कहा जाए। हम क्योंकर आदमी नहीं बन पाते। मुझे नहीं पता...........। मैं अभी भी सोच रहा हूं..........। आपके पास जवाब हो तो बताइये।

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