शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010



आगरा : कीठम मैं नव वर्ष की पूर्व संध्या पर उड़ान भरते परिंदे ।

रविवार, 26 दिसंबर 2010

हाय! रिजोल्यूशन

मैं क्या रिजोल्यूशन लूं। क्या छोडूं, क्या संकल्प करूं। नूतन वर्ष के आगमन में केवल गिने-चुने दिन शेष हैं और अभी मेरा रिजोल्यूशन ही फाइनल नहीं है। गिनी-चुनी गलत आदतें इतनी प्यारी हैं कि उनको छोडऩे के बारे में सोच तक नहीं सकता। दृढ़ निश्चयी बस इतना हूं कि संकल्प लेने के नाम पर पसीने आ जाते हैं। लेकिन क्या करूं, रिजोल्यूशन तो लेना ही है।
जब आपको किसी चीज का अभाव सता रहा हो तो पास-पड़ोस में उस चीज की बहुतायत हो जाती है। ऊपरवाले की ये अटपटी शैली आजकल मुझे सरेआम शार्मिंदा कर रही है। मुझे कोई रिजोल्यूशन मिल नहीं रहा। मेल-मुलाकात वाले नित अपने रिजोल्यूशन का बखान कर रहे हैं। कार्यालय में पड़ोसी अपने रिजोल्यूशन को एक बड़े झोले में भरकर लाए। कैसे कोई देखने से छूट जाएगा। एक तो रिजोल्यूशन न मिल पाने की पीड़ा, ऊपर से 'दूसरे के पास रिजोल्यूशन हैÓ की ईष्र्या। ऐसे तड़प उठती है जैसे घाव पर नमक मल दिया हो।
भविष्य की चिंता भी है। क्या कहूंगा, कि मैं इस साल क्या नया करने वाला हूं। चिंता दिमाग को हिलाए हुए है। सब बताएंगे, मैं चुप रहूंगा। एक साथी ने साल के आखिरी दिनों के लिए एक गलत आदत पालने की सलाह दे डाली। बोले, परेशान न हो। एक-दो दिन के लिए कोई गलत काम करो, फिर साल के आखिरी दिन उस गलत आदत को छोडऩे का संकल्प ले लेना। दो दिन में वो गलत आदत भी नहीं पड़ेगी और रिजोल्यूशन भी मिल जाएगा। साथी का सुझाव सार्थक लगा लेकिन अब दूसरी चिंता लग गई। कौन सी गलत आदत डाली जाए।
इस बार सुझाव मेरे खुद के जीनियस दिमाग ने दिया। क्यों न सभी अच्छी-अच्छी गलत आदतों का ट्रायल कर लिया जाए। जो गंदी आदत अच्छी लगेगी उसे ही अपना लिया जाएगा। आशा है, जल्द ही कोई गंदी आदत अच्छी लगेगी और रिजोल्यूशन कर पाऊंगा।

बुधवार, 27 अक्तूबर 2010

हमारा कश्मीर लेकिन कितना



बंटवारे के दौरान जम्मू-कश्मीर के पास भारत या पाकिस्तान के साथ जाने का रास्ता खुला था। कश्मीर के महाराजा आजादी के पक्षधर थे, लेकिन पश्चिमी भाग में मुसलिमों के विद्रोह और पाकिस्तान से कबालियों ने आक्रमण कर दिया। मोहम्मद अली जिन्ना ने भी पाकिस्तान आर्मी को कश्मीर पर आक्रमण करने को कहा लेकिन तत्कालीन ब्रिटिश जनरल डगलस ग्रेसी ने हुक्म मानने से इनकार कर दिया। हालांकि कबायली भी श्रीनगर से केवल एक घंटे की दूरी पर स्थित बारामूला तक पहुंच गए थे। ऐसे में २४ अक्तूबर, १९४७ को कश्मीर के महाराजा ने भारत से सहायता मांगी। भारतीय सेना ने कबालियों को कश्मीर से गिलगिट तक खदेड़ दिया।
इसी दौरान भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने संयुक्त राष्टï्र से हस्तक्षेप करने को कहा। यूनाइटेड नेशंस ने यूनाइटेड नेशंस सिक्योरिटी कौंसिल रिजोल्यूशन ४७ के तहत पाकिस्तान से अपनी फौजों को कश्मीर से वापस बुलाने को कहा। जिसके बाद पूरे कश्मीर में लोगों की इच्छा जानने के लिए रायशुमारी होनी थी। हालांकि न पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मी से उनकी फौज हटी न कोई रायशुमारी हो सकी। पाकिस्तान के अधिकार में रहा तब का क्षेत्र पाक अधिकृत कश्मीर कहलाता है। बाद में चीन से लड़ाई के बाद कश्मीर का एक और हिस्सा टूट गया। अब ये अकसाई चीन है।


According to the Indian embassy:
“ Whereupon the Maharaja signed the Instrument of Accession on October 26, 1947. A simultaneous appeal for assistance and for the state’s accession to the Indian Union was also made by Sheikh Abdullah, leader of the National Conference, and the undisputed leader of the people, who had for his views been imprisoned by the Maharaja’s government into September ’47 and released only under pressure of India’s Prime Minister. On receipt of the signed Instrument of Accession from the Maharaja, preparations were made to fly Indian troops to the State. The formal letter of acceptance of the Accession was signed by Lord Mountbatten on October 27 making Jammu and Kashmir an integral part of India even as Indian forces were airlifted to Srinagar.”
Pakistan disputes this and according to the BBC
“ Recent research, from British sources, has indicated that Hari Singh did not reach Jammu until the evening of 26 October and that, due to poor flying conditions, V P Menon was unable to get to Jammu until the morning of 27 October , by which time Indian troops were already arriving in Srinagar. In order to support the thesis that the Maharaja acceded before Indian troops landed, Indian sources have now suggested that Hari Singh signed an Instrument of Accession before he left Srinagar but that it was not made public until later. This was because Hari Singh had not yet agreed to include the Kashmiri leader, Sheikh Abdullah, in his future government."

रविवार, 17 अक्तूबर 2010

मैं मुस्करा रहा था

कुछ समय पहले की बात है। बेवाच, स्टार टीवी पर आधी रात के करीब आता। पुरुषों को जगाता। छिपते-छिपाते कम आवाज में कम कपड़ों में युवतियां देखी जातीं। क्या दिन थे।अब बेवाच, हिंदी में डब होकर प्रसारित हो रहा है। प्रसारण के लिए स्लाट प्राइम टाइम (रात आठ बजे से ११ बजे) है। लेकिन कोई देखता नहीं। क्यों, इतना तो चाहे जहां दिख जाता है। कहने का मतलब ये कि नग्नता की स्वीकार्यता बढ़ी है।दिमाग पर बचपन (७-८ वर्ष) का एक प्रसंग अमिट है। बाह तहसील के अशोक नगर मोहल्ले में हमारा घर है। पड़ोस में मिश्रा जी के यहां उनके बड़े या मंझले (अधिक ध्यान नहीं) बेटे की शादी थी। शादी की काफी धूमधाम थी। कार में कुछ रिश्तेदार भी आए थे। तब कार देहात क्षेत्र में एक बड़ी चीज थी तो आकर्षण में बंधे मोहल्ले के बच्चे उनकी चारदीवारी के पास ही घूम रहे थे।एक बच्चे को दिखा कि चारदीवारी के पास दो रुपए का नोट पड़ा है। बच्चों की भीड़ लग गई। बड़े शादी की तैयारियों में व्यस्त थे तो कौतुहल केवल छोटी जमात तक सीमित रहा। काफी देर तक मैं और मोहल्ले के बच्चे खड़े रहे। किसी की हिम्मत उस दो रुपए के नोट को उठाने की नहीं हो रही थी। तब किसी का गिरा हुआ वो नोट, बुराई का प्रतीक सा था। कई सवाल उमड़ घुमड़ रहे थे। अरे! मैंने उठाया तो सब बच्चे क्या कहेंगे। घर में पता लगा तो। हम घेरा बनाकर खड़े रहे। तब मोहल्ले में बुरे लड़के के रूप में प्रसिद्ध एक बालक आया और उसने वो नोट उठा लिया और चलता बना। अब मुझे २४ साल के बाद कहीं एक रुपये का नोट भी दिख जाए तो मैं झट उठा लूंगा। मेरे तब केउस दो रुपए के नोट को उठाने से हिचकने वाले साथी भी ऐसा ही करेंगे। बुराई की स्वीकार्यता बढ़ी है। किसी के पैसे का उपभोग करना तब बुराई था अब स्वीकार्य है।बुराई पर अच्छाई की जीत के पर्व पर ये बातें अचानक दिमाग में नहीं आईं। एक साथी अपने गुरु के (अव) गुणों का बखान कर रहे थे। बड़ी तसल्ली से, बिना लाग-लपेट, बिना संकोच, किला फतह करने की तरह। गुरु जी का चातुर्य ये कि वो कटोरा लेकर आए, अब करोड़ों में खेल रहे हैं। वो उनके पासंग भी नहीं। वो बिना ज्ञान के परम ज्ञानी। खड़े-खड़े जिस चाहें बेच आएं। ऐसा कई के साथ कर चुके हैं...........।मन में बस ये ख्याल आया, कलयुग चरम पर है।वैसे बुराई की स्वीकार्यता तो बढ़ी है, उसका पौरुष भी बढ़ा है। अब वो अच्छाई को सरेआम बेइज्जत भी कर देती है। क्या हो तुम, निरे बौड़म (सहृदय)। उसने दो आंसू क्या बहाए, ब्याज ही छोड़ दिया। पहले के कुछ सद्ïगुण अब अवगुण और अवगुण अब सद्ïगुण हैं। गौर फरमाइए.......तब सच्चे, अब बेवकूफ। तब सहृदय अब बुद्धू। तब कर्तव्यपरायण अब अव्यावहारिक। तब कुटिल अब व्यावहारिक.........। ऐसी निराशावादी सोच के बीच किसी का कहा एक वाक्य ध्यान आ गया। कलयुग की कालिमा फैलने पर चर्चा के दौरान ये वाक्य कहा गया था। जब तक किसी बच्चे को देखकर आपके मन में वात्सल्य उमड़े और आप बरबस मुस्करा दें, समझिए अच्छाई जिंदा है। आज मैं अपनी एक पांच दिन पहले ही पैदा हुई भतीजी से मिला। वो सो रही थी और मैं मुस्करा रहा था।दशहरे की शुभकामनाएं!

शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2010

लोमड़ी जी, आपको प्रणाम

लोमड़ी को जब लता में ऊंचाई पर लगे अंगूर काफी प्रयास के बाद भी हासिल नहीं होते। वो कहती है, अंगूर ख_ïे हैं, और अपनी राह लेती है।लोमड़ी की इस बात केलिए पता नहीं क्यों आलोचना की जाती है। पीढिय़ों से इस कतई व्यावहारिक व्यवहार को कृत्य साबित किया जा रहा है। यदि अतिरिक्त प्रयास के बाद भी आपको कोई वस्तु प्राप्त न हो तो सबसे उचित व्यवहार क्या होगा। उस वस्तु के लोभ में व्याकुल रहें। प्रयास विफल होने के क्षोभ में निराश हो जाएं। रोना, कलपना शुरू कर दें...।जो खाद्य वस्तु मिल नहीं रही उसका स्वाद कुछ भी हो क्या सोचें। जो अतिरिक्त प्रयास के बाद भी प्राप्त न हो उस पर क्या कलपें। क्यों न आगे बढ़ें और अन्य को अपना लें। ...........लोमड़ी जी ने ये ही किया। लोमड़ी जी आपको प्रणाम!

गुरुवार, 14 अक्तूबर 2010

आदमी बन!

सुरेंद्र मोहन पाठक। आम जन के लिए उपन्यास लिखने वाले लेखक महोदय का बहुतायत में प्रयोग किया जाने वाला एक वाक्य अचानक ध्यान आया। आदमी बन! आपकी स्वाभाविक प्रतिक्रिया हो सकती है, ऐसा इन दो शब्दों और एक चिन्ह में क्या है। मैं उपदेश देने पर आऊं तो अकसर कहता हूं कि अच्छे आदमी बनो। बोलता हूं, गुणवान आदमी बनो। ताकीद करता हूं, तेज तर्रार आदमी बनो........। लेकिन आदमी बनने की बात कभी नहीं कही। हम अच्छा आदमी बनने की कोशिश करते हैं, तेजतर्रार आदमी बनने में लगे रहते हैं, लेकिन आदमी होते हुए आदमी नहीं बन पाते। बनने का प्रयत्न भी नहीं करते। ख्याल भी नहीं आता। आदमी। सभी कमजोरियों से भरा हुआ। ईष्र्यालु, क्रोधी, घमंडी, लालची..........। फिर आदमी में ऐसा क्या है कि आदमी बना जाए, आदमी बनने की कहा जाए। हम क्योंकर आदमी नहीं बन पाते। मुझे नहीं पता...........। मैं अभी भी सोच रहा हूं..........। आपके पास जवाब हो तो बताइये।